Sunday, 13 July 2025

अरुण और दीन

 

🌿 अरुण और दीन 🌿


गली के नुक्कड़ पे, छुपा वो बचपन था
कंचे, किताबें, ख्वाब, बस एक दर्पण था
अरुण उत्तर की धूप सा, दीन दक्षिण की छाँव
मिलते तो जैसे खिल उठे, बिछड़ें तो उदास पाँव


अरुण और दीन, बचपन के साथी
कितनी दूरियाँ, फिर भी खाली
साल में इक बार, जब मिलते हैं वो
सारे दिन पुराने, फिर खिलते हैं वो
अरुण और दीनअरुण और दीन


स्कूल की घंटी में, दो दिलों का राग था
होमवर्क में झगड़े थे, माफी भी साथ था
चिट्ठियों में बातें थीं, फोटो में हँसी
जुदा हुए शहर तो क्या, दिलों में नमी


अरुण और दीन, बचपन के साथी
कितनी दूरियाँ, फिर भी खाली
साल में इक बार, जब मिलते हैं वो
सारे दिन पुराने, फिर खिलते हैं वो
अरुण और दीनअरुण और दीन


उत्तर की मिठास है, दक्षिण का प्यार
साल भर इंतज़ार है, वो मिलन बहार
बस इक बार मिल जाएँ, फिर बचपन जिएँ
दोस्ती की मिट्टी में, सपने पिएँ


अरुण और दीन, बचपन के साथी
कितनी दूरियाँ, फिर भी खाली
साल में इक बार, जब मिलते हैं वो
सारे दिन पुराने, फिर खिलते हैं वो
अरुण और दीनअरुण और दीन




 

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